खत्म होती आस्था
खत्म होती आस्था...
एक छोटी कहानी सत्य घटना पर आधारित।
सदा संयमित व्यवहार करने वाली यशोदा सित्कार उठी, वाक्या ही ऐसा था वो सहन नही कर पाई। छोटी ननद सुनीता पिछले तीन महीने से ब्रेन ट्यूमर के चलते अर्ध कोमा की अवस्था में है और वो उनकी विशेष देखभाल के लिये अपने शहर को छोड़ ननद के ससुराल आती रहती है। इस बार कोई विशेष थेरेपी डाक्टर आजमा रहे थे तो यशोदा की जेठानी भी साथ थी। दोनों देख रहे थे घरवालों का व्यवहार सुनीता के साथ बहुत ही रुखा और अमानवीय था, सास अनपढ़ वयोवृद्ध कुछ बद दिमाग, सारा दिन चिल्लाती रहती हैं। कहती हैं सुनीता नाटक करती है, सिर्फ बैठी रहती है काम नहीं करने के बहाने हैं सारे। सुनीता की ननद और पति का व्यवहार भी रुखा है, कहते रहते हैं कोई ठीक होने वाली नहीं फालतू खर्च करना है इस पर।
जेठानी ने ताव में कह दिया जब तक काम करती थी सुनीता अच्छी थी अब सेवा करनी पडती है तो बुरी हो गई।
सुनीता की ननद ने कहा इतना ही प्यार है तो दोनों बेटियों सहित उसे अपने घर ले जाओ बेटे को जैसे तैसे हम पाल लेंगे।
और यशोदा फट पड़ी। खर्चा हम सहर्ष उठा रहें हैं, और देखभाल को नर्स भी रख देंगें, तीनों बच्चों को होस्टल भेज देंगें। यहां वैसे भी वातावरण बिगड़ा हुआ है पढ़ भी नहीं पाते उस पर समधन जी की डाँट-डपट। पर रहेंगे इसी घर के।
उनके जोर से बोलते ही सभी चुप हो गये। डर था कहीं खर्च से हाथ ना खींच लें।
यशोदा रो पड़ी। बहुत लगाव था उन्हें अपनी छोटी ननद से। जब ब्याकर आई थी ससुराल तो 10 वर्षीय सुनीता सारा दिन भाभी के आगे पीछे डोलती रहती और गलबहियाँ डाले प्यार जताती थी। उसकी शादी भी अपने हाथों से की थी उन्होंने और बच्चों के जन्म पर भी सदा उसके साथ रही। दोनों में बहुत स्नेह था, वो समझ गई वे सब कतरा रहें हैं और अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा पाना चाहते हैं ।
ननदोई भी चाहते हैं कि सुनीता से मुक्त हों तो दूसरी शादी कर लें और बच्चियों का भार भी मामा-मामी वहन करें।
यशोदा निस्तब्ध थीं , सोच रही थी कि कैसी बिडंबना है। अगर उसकी ननद सुनीता की जगह सुनीता के पति की हालत ऐसी होती तो क्या फिर भी सबकी सोच ऐसी ही होती? क्या सुनीता अपने पत्नी धर्म से ऐसे ही मुँँह मोड़ लेती? अनसुलझे प्रश्नों की श्रृंखला में खोयी अपनी जिम्मेदारी की रुपरेखा बुनने लगी उदास और हारी हुई सी यशोदा ।
कुसुम कोठारी ।
एक छोटी कहानी सत्य घटना पर आधारित।
सदा संयमित व्यवहार करने वाली यशोदा सित्कार उठी, वाक्या ही ऐसा था वो सहन नही कर पाई। छोटी ननद सुनीता पिछले तीन महीने से ब्रेन ट्यूमर के चलते अर्ध कोमा की अवस्था में है और वो उनकी विशेष देखभाल के लिये अपने शहर को छोड़ ननद के ससुराल आती रहती है। इस बार कोई विशेष थेरेपी डाक्टर आजमा रहे थे तो यशोदा की जेठानी भी साथ थी। दोनों देख रहे थे घरवालों का व्यवहार सुनीता के साथ बहुत ही रुखा और अमानवीय था, सास अनपढ़ वयोवृद्ध कुछ बद दिमाग, सारा दिन चिल्लाती रहती हैं। कहती हैं सुनीता नाटक करती है, सिर्फ बैठी रहती है काम नहीं करने के बहाने हैं सारे। सुनीता की ननद और पति का व्यवहार भी रुखा है, कहते रहते हैं कोई ठीक होने वाली नहीं फालतू खर्च करना है इस पर।
जेठानी ने ताव में कह दिया जब तक काम करती थी सुनीता अच्छी थी अब सेवा करनी पडती है तो बुरी हो गई।
सुनीता की ननद ने कहा इतना ही प्यार है तो दोनों बेटियों सहित उसे अपने घर ले जाओ बेटे को जैसे तैसे हम पाल लेंगे।
और यशोदा फट पड़ी। खर्चा हम सहर्ष उठा रहें हैं, और देखभाल को नर्स भी रख देंगें, तीनों बच्चों को होस्टल भेज देंगें। यहां वैसे भी वातावरण बिगड़ा हुआ है पढ़ भी नहीं पाते उस पर समधन जी की डाँट-डपट। पर रहेंगे इसी घर के।
उनके जोर से बोलते ही सभी चुप हो गये। डर था कहीं खर्च से हाथ ना खींच लें।
यशोदा रो पड़ी। बहुत लगाव था उन्हें अपनी छोटी ननद से। जब ब्याकर आई थी ससुराल तो 10 वर्षीय सुनीता सारा दिन भाभी के आगे पीछे डोलती रहती और गलबहियाँ डाले प्यार जताती थी। उसकी शादी भी अपने हाथों से की थी उन्होंने और बच्चों के जन्म पर भी सदा उसके साथ रही। दोनों में बहुत स्नेह था, वो समझ गई वे सब कतरा रहें हैं और अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा पाना चाहते हैं ।
ननदोई भी चाहते हैं कि सुनीता से मुक्त हों तो दूसरी शादी कर लें और बच्चियों का भार भी मामा-मामी वहन करें।
यशोदा निस्तब्ध थीं , सोच रही थी कि कैसी बिडंबना है। अगर उसकी ननद सुनीता की जगह सुनीता के पति की हालत ऐसी होती तो क्या फिर भी सबकी सोच ऐसी ही होती? क्या सुनीता अपने पत्नी धर्म से ऐसे ही मुँँह मोड़ लेती? अनसुलझे प्रश्नों की श्रृंखला में खोयी अपनी जिम्मेदारी की रुपरेखा बुनने लगी उदास और हारी हुई सी यशोदा ।
कुसुम कोठारी ।
समाज को आईना दिखता सुन्दर लेख सखी |
ReplyDeleteलेखनी से लिखा आज का समाज, कल्पनाओं से उपर उठता हुआ ,बहुत अच्छा लगा |
सादर
कड़ुवी सच्चाई
ReplyDeleteकटु यथार्थ समाज का ...., पद्य की ही तरह गद्य लेखन भी अप्रतिम ।
ReplyDeleteसामाजिक पहलू का एक कटु सत्य दर्शाती लेखनी ,बहुत सुंदर
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ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति सखी
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी रचना .
ReplyDeleteहिन्दीकुंज,हिंदी वेबसाइट/लिटरेरी वेब पत्रिका
छत अलग-अलग है किस्से २१ वीं सदी में भी अलग-अलग नहीं हुए
ReplyDeleteसत्य कथा सुंदर
Bahut gyanvardhak rachna likhi hai. Ration Card Suchi
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट
ReplyDeletehmmmmm,....अनसुलझे प्रश्नों की श्रृंखला में ...... जिम्मेदारी की रुपरेखा ......उदास और हारी हुई सी
ReplyDelete:)
chaahe kon si bhi sdiii kyun naa aa jaaye....aisi yashoda aur sunita hoti hiin hain...........
ye andhkaar...ye ghutan...kyun mit nhi paati..kyunnnn,,,,,
kusum ji...shubhkaamnaaye
ik lekhak agar pdhane wale ko sochne par mazboor kr de...to uska likhnaa saarthak ho jata he...
main soch me doob gyi..:)
कटु यथार्थ
ReplyDeleteऐसा ही होता है - जो बेबस होता है उसे ही दबाया जाता है .
ReplyDeleteसत्यकथा पर आधारित एक नंगा सच को और भी नंगा करती लघुकथा ... मुझ जैसे इंसान को पढ़ते-पढ़ते रुलाने के लिए काफी है ...
ReplyDeleteसुन्दर लघुकथा। हम लोग औरतों से तो मुश्किलों में साथ निभाने की उम्मीद करते हैं लेकिन अगर उलट हो जाये तो काफी लोग जिम्मेदारी से कतरायेंगे। समाज एक स्याह पहलू को दर्शाती लघु-कथा। आभार।
ReplyDeleteकटु सत्य दर्शाती बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रशंसनीय प्रस्तुति
ReplyDeleteaapke agle lekhan ki prtikshaa me
ReplyDeleteकटु सत्य ...
ReplyDeleteबेहतरीन लेखन ...